15 May 2020

अस्तित्त्व की शर्त (कविता) -अमृत उपाध्याय


अस्तित्त्व की शर्त

सुना है
कैद हो तुम आजकल
तुम्हारे गुमान की रोशनी पर
अँधेरा मंडराने लगा है अब
तुमने जो रेशमी जाल बने थे
अपनी जीत के लिए
उसी में घुट रहे हो
दिन-रात
सुना मैंने
कि तुम डरने लगे हो कहने में
कि इंसान तो कुछ भी कर सकता है


ज़िन्दगी या मौत
सृजन या विनाश
कुछ भी
हताश से दिखने लगे हो तुम
सबकुछ मसल देने की तुम्हारी हैसियत
दम तोड़ने लगी है अब
सुना है
ब्रम्हांड की सबसे ताकतवर प्रजाति
अस्तित्त्व का सवाल लिए
हाथ जोड़कर खड़ी है
कुदरत के सामने
तो सुनो
कुदरत का साँस लेते रहना ही है
तुम्हारे अस्तित्त्व की एकमात्र शर्त।
                      -अमृत उपाध्याय